बरगद की छांव
बरगद की छांव
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जीवन
वट वृक्ष से तुम
स्नेहलता सी मैं
साये में जलती हुई
दीप शिखा सी मैं
आरती के थाल से तुम
हरसिंगार सी मैं
वर्षो से तुम अटल
उम्र भर अमर प्रेम
जताती हुई मैं
युगों से है हम
कच्चे सूत से बंधे
बन्धन जन्म जन्मान्तर का
निभाती हुई मैं
हम दोनों ही तो है
एक दूसरे के पूरक
फिर जन्म लेते हुए
तुम फिर तुम्हारे
लिये मरती हुई मैं।