जिन्दगी खेल नहीं
जिन्दगी खेल नहीं
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बड़ा व्यथित हूं ये क्या देख रहा हूं मैं
खुद अपना घर जलता देख रहा हूं मैं
धुआँ उड़ा कर जो अंधेरा कर गये है
सब को ही आँखें मलता देख रहा हूं मैं
न तू कोई मुकम्मल इंसान बन सका
खुद को खुद से लड़ता देख रहा हूं मैं
खाक हो चले यहां प्यार के अफ़साने
कितनी रूह तड़पता देख रहा हूं मैं
मिलेगा क्या ये बस्तियां उजाड़ कर
जब दिल को उजड़ता देख रहा हूं मैं..
