'बचपन' बनाम 'ज़िन्दगी'
'बचपन' बनाम 'ज़िन्दगी'
काश कि बचपन हमारा लौट आया करता
काश कि हर वो लम्हा हमको वापस बुलाया करता
जब करते थे शैतानियाँ सुबहो-शाम
काश कि ज़िन्दगी कैसी होती है कोई तब भी बताया करता
काश कि बचपन हमारा लौट आया करता
मां-बाप ने तो कोई ग़म का साया भी नज़दीक ना आने दिया
काश कि ग़म खुद ही खुद को भूल जाना सिखाया करता
काश कि बचपन हमारा लौट आया करता
वो पल तो जी लिए ज़िन्दगी के उन चंद सहेलियों के संग
काश कि कोई अब भी हमें समझ जाया करता
काश कि बचपन हमारा लौट आया करता
तब ख़ुशियाँ ढूँढ लेना उन छोटी छोटी चीजों में
काश कि ज़िन्दगी भर यही करना है कोई तब समझाया करता
काश कि बचपन हमारा लौट आया करता
