बच्चों में संस्कार
बच्चों में संस्कार
कैसे डाले बच्चों में अच्छे संस्कार?
क्या अब माता-पिता करते नहीं है बच्चों से प्यार?
समय भी थोड़ा बदल चुका है।
काम भी लोगों का बढ़ ही चुका है।
सब के हाथ में है मोबाइल और सब हाथ को है काम।
प्यारी बिटिया अवसाद से घिरी थी।
वह बोली जाकर पापा के पास
पापा मैं अवसाद में जा रही हूं।
पापा मोबाइल में बिजी थे
सुनकर उन्होंने कह दिया घर में रहो नहीं है कहीं जाने का काम।
यह सुनकर मम्मी के पास आई।
वही बात से उसने फिर दोहराई।
मम्मी भी मोबाइल चला रही थी
शाम तक आ जाना ऐसा वह अपनी बिटिया को बता रही थी।
दादी के हाथ में रिमोट था और वह टीवी देखने में व्यस्त थी।
मैं अवसाद में जा रही हूं सुनकर दादी चिल्लाई,
कहीं नहीं जाना यहीं बैठ जा, ऐसी दादी की आवाज थी आई।
यह तो छोटा सा उदाहरण है।
वयस्कों के पास में समय कम है।
संस्कार सिखाने की जिम्मेवारी भी
सबने है गूगल को थमाई।
एक समय वह भी था
जब समय सबके पास में ही था।
अपने बच्चों पर नजर रखते थे।
कुछ गलत हुआ तो कूटने में भी शर्म नहीं करते थे।
तब बच्चों में अवसाद नहीं था।
माता पिता अपने कर्तव्य निभाते थे।
बच्चे भी वही देख कर समझ जाते थे।
आज गूगल में सबको सबका अधिकार है बताया।
माता-पिता गुरुजनों को बच्चों के साथ करना चाहिए कैसा व्यवहार यह समझाया।
सुनने और समझने का किसी के पास वक्त नहीं है।
जो भी घर में देखते हैं बच्चे तो करते वहीं हैं।
बच्चों को संस्कार सिखाना है तो बदलाव खुद में लाओ।
पहले खुद समझो फिर जाकर बच्चों को समझाओ।
