बारिश
बारिश
हैं मायूस ना जाने किससे
सावन बरस ना पाए,
बूँद बरसे तो जरा
फिर से हरियाली आये।
गर्म तपती धूप से सबको
राहत सी आ जाए,
सुबह की पहली धूप में फिर से
शबनम मोती बन जाए।
दे सुकून हम को बड़ा
जब अंबर से तू आये,
बह जाए कभी नाली में
कभी नदी बन जाए।
फैलाती है धरती पर
मिट्टी की सौंधी खुशबू,
भीनी-भीनी यह खुशबु
सबके मन को भाये।
खिलती थी तेरे छूने से
अब वो लता घबराए,
गर्म तपती धूप में
सभी रहीं मुरझाए।
हैं मायूस ना जाने किससे
सावन बरस ना पाए,
बूँद बरसे तो जरा
फिर से हरियाली आये।
