मेवाड़–केसरी देख रहा
मेवाड़–केसरी देख रहा
मेवाड़–केसरी देख रहा¸
केवल रण का न शौर्य था
वह दौड़–दौड़ करता था रण¸
वह मान–रक्त का प्यासा था
वो राणा प्रताप का चेतक था
गिरता न कभी, रुकता न कभी
चाल देख उसकी चट्टान भी दंग था
वह मातृभूमि के लाल का निराला सरताज था
वो राणा प्रताप का चेतक था
जिसकी वीरता देख अकबर ने पग मोड़ा था,
ऐसा था प्रताप का अद्भुत चेतक
जिसने शत्रु को तांडव करवाया था
रक्त-युद्ध में राणा का कृष्णा सारथी था
महाराणा के भाले सा उसका एक निशाना था
वो राणा प्रताप का चेतक था
निर्भीक गया हल्दीघाटी के मैदानों में,
जो प्रलयंकारी को मौत पाठ पढ़ाना था,
धरती की आन जो बचाना था
वो राणा प्रताप का चेतक था
कुछ तो बात है इस माटी की फ़िज़ाओं में
जो था यही वो रहा यही
जो रहा कही वो था यही
ऐसी कोई जन्नत नहीं जहां रहा वह मन्नत नहीं था
वो राणा प्रताप का चेतक था
देख नाला सा वह गहराता नद था
फिर ठहर कुछ सोच विचार किया था
तब बिजली सा रौद्ररूप धर
अरि की सेना का संहार किया था
वो राणा प्रताप का चेतक था
गिर गया भाला गिरा निशंग
हाय तोपों से खन गया अंग
बैरी समाज रह गया दंग
किसी घोड़े का देख ऐसा रंग
वो राणा प्रताप का घोड़ा था।
