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shagun Kumari

Others

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shagun Kumari

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ज़िन्दगी जीना सीखा रही थी

ज़िन्दगी जीना सीखा रही थी

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एक दिन सपना नींद से टूटा

खुशी का दरवाजा फिर से रूठा


मुड़ कर देखा तो वक्त खड़ा था

जिंदगी और मौत के बीच पड़ा था


दो पल ठहर के मेरे पास वह आया

पूछा मिली थी जो खुशी उसे क्यों ठुकराया


ऐसे में जब मैं हल्का सा मुस्कुराया

नजरें उठाई और तब सवाल ठुकराया


जवाब सुनकर वह भी रोने लगा

कहीं ना कहीं मेरे दर्द में खोने लगा


मेरे भाई हसा नहीं कभी खुद के लिए

जिया हो जिंदगी पर ना कभी अपने लिए


इस खुशी का एक ही इंसान मोहताज था

मेरी जान मेरी धड़कनों का वो ताज था..


आखिर खत्म हो गया एक किस्सा मेरी जिंदगानी का

पर नाज रहेगा हमेशा अपनी कहानी पर।


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