बापू आह्वान
बापू आह्वान


बापू तुम्हारे
अंधे, बहरे और गूंगे बन्दर
सारे देश में छा गए थे,
संसद से लेकर सड़क तक
सभी में जड़ जमा गए थे !
जब चाहें, जहाँ चाहें
मचा देते थे उत्पात,
कहीं उखाड़ देते थे माइक
तो कहीं फाड़ देते थे कागज़ात !
समझ चुके थे पेड़ों पर
पैसा न उगने की बात,
इसीलिए कोयले की दलाली में काले
करते थे अपने मुंह और हाथ !
अगर कभी वक़्त मिले तो
इधर निकल आओ,
अपने बंदरों को अपनी शिक्षा का
सही मतलब समझा जाओ !
क्यूंकि यह आजकल
इतनी ही नीति जानते हैं,
तुम्हारे किस रंग के फोटो का क्या
'मूल्य' है - यही पहचानते हैं !
राष्ट्र धर्म से हो गए हैं
ये विहीन
कर लेते दुश्मन से दोस्ती
फ़िर पाक हो या चीन।
बापू तुम इन्हें साथ
अपने ले जाओ
या फिर किसी कांजी हाउस में
इनको बन्द करवा जाओ।