सपना
सपना
बचपन में हमने देखा
नील गगन में घर का सपना
रंगबिरंगे गुब्बारों से
हवा में बंगला उड़ता अपना
पंछी जैसे उड़कर फिर तो
किसी देश भी चले जायेंगे
अपने साथी चुन्नु मुन्नु को
संग अपने ले जायेंगे !
बड़े हुए तो समझ में आया
सपने कब होते हैं अपने
धरती पर भी जगह ना मिलती
सपने रह जाते बस सपने !
क्यूँ ना हम जीवन भर
रह पाते हैं बन कर बच्चे
या फिर क्यूँ ना आगे चलकर
सब सपने हो जाते सच्चे !