गुरु आशीष
गुरु आशीष
करे सुमन हम अर्पण तुम्हे,
अंधकार सब मिटा तुम्ही ने उजियारे हमें दिए,
मुझ मुर्ख को क्या समझ इन रास्तों की,
ना थी ख़बर कुछ दुनिया की,
तुमने पग पग पर संभाला,
सारथी बन इस अर्जुन को तारा,
श्वेत बिल्कुल खाली सा था अंतर मन यह,
गुरु आपने बिखेरी ज्ञान की सिहायी यह,
मैं अज्ञान,
सब अक्षर से अनजान,
तुमने दिया अनमोल रतन शिक्षा का,
एहसास मिला अपने पन सा,
मेरे विश्वास को अटल किया,
मन को निर्मल कर दिया,
हर युद्ध के लिए मुझे तैयार किया,
हर चक्रव्यूह को तोड़ सकू मुझे वो अभिमन्यु बना दिया,
निराकार मैं मुझे आकार दिया,
बूंद बूंद मुझे देकर मेरे ज्ञान सागर को तृप्त किया,
मेरे जीवन के बन बुनकर,
मेरे चरित्र को स्वरुप दिया,
हे गुरु शत शत नमन,
प्रशिक्षित करे मुझे हर क्षण।