"बालपन/बचपन"
"बालपन/बचपन"
बालपन था वो स्वर्णिम जीवन
सुखद-मनोहर-मनभावन।
मिलता नेह सभी से सुन्दर,
और दिल में था अपनापन।
खेल खेलते गिल्ली-डंडा,
पिट्ठू पकड़म पकड़ाई।
सौंधी मिट्टी खूब सुहाती,
धूल- धूसरित था बचपन।।
कोरा कागज सा मन अपना
राग-द्वेष का भाव नहीं।
आस-पास में झगड़ा होना,
हम पे कोई प्रभाव नहीं।।
सुंदर सपने बुनते रहते,
रोज बनाते हम विमान।
बचपन सबसे अनुपम है
बालमन का स्वभाव यही।।
मेले-तीज-त्योहारों की,
उत्सुकता मन में रहती थी।
नव-नव परिधानों से सज्जित
हमारी टोली होती थी।
खाना-पीना मौज बहारें,
संग सखा भी होते थे।
वैर-भाव से दूर कहीं हम
रंग-बिरंगी दुनिया थी।
