मेरे लंगड़े पैर को निहारते हैं। मेरे लंगड़े पैर को निहारते हैं।
हम सब छिपे, डरे, सहमे, मौसम था बहरा। हम सब छिपे, डरे, सहमे, मौसम था बहरा।
रंगबिरंगी चहल पहल और सजा कौतूहल सा था बड़ा़ खुशनुमा मेरा ये आज सफर बस का था। रंगबिरंगी चहल पहल और सजा कौतूहल सा था बड़ा़ खुशनुमा मेरा ये आज सफर बस का था।
बैठी रहती है सूनी आंखों में लेकर कुछ झिलमिलाते अश्रु बिन्दुओं को, बैठी रहती है सूनी आंखों में लेकर कुछ झिलमिलाते अश्रु बिन्दुओं को,
बस रहती है एक आशा, कोई तो आकर सुने उसकी भी दास्ताँ बस रहती है एक आशा, कोई तो आकर सुने उसकी भी दास्ताँ
वो अक्स से हक़ीक़त में आने का नाम नहीं ले रहा मेरे खोज का अब तक कोई अंजाम नहीं दे रहा वो अक्स से हक़ीक़त में आने का नाम नहीं ले रहा मेरे खोज का अब तक कोई अंजाम नहीं ...