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Anuradha Negi

Romance Classics

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Anuradha Negi

Romance Classics

आज सफर बस का था

आज सफर बस का था

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रातें ठंडी थी पर उठना जल्दी पड़ा था

जाना था दूर शाम वापस आना पड़ा था

कहीं दुकानें सूनी कहीं लगा सर्कस सा था 

देखा मैैंने क्योंकि आज सफर बस का था।


सीटें एकदम सीधी मुलायम उसकी गद्दी थी

कभी सड़क ऊंची तो कहीं वो नीचे धंसती थी 

कभी छोटी गाड़ी कभी अटकता पत्थर सा था 

देखना सब था क्योंकि आज सफर बस का था।


सीट से नजरेंं मैं बाहर को करती जब तक 

उजड़े जंगल भी सुहानेे सेेे लगते तब तक 

कभी गाय बीच में तो कभी आता बंदर सा था 

कितनी उत्सुकता से भरा आज सफर बस का था।


पहुंची बाजार तो देखा भीड़़ सेेेे भरी दुनिया थी

कहीं दिखती सजाने की चीजें कहींं टंगी गुड़िया थी

रंगबिरंगी चहल पहल और सजा कौतूहल सा था

बड़ा़ खुशनुमा मेरा ये आज सफर बस का था।


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