बाल श्रम
बाल श्रम
मजबूर हुआ है,
बालक...
बचपन में ही ढोने लगा जीवन का भार,
पढने कि उम्र मे हाथों में आ गई ईटे।
दुखता कंधा तो भी वह जीवन का भार उठाता है।
उस बालक का जीवन कहि खो गया है।
नन्ही जान ने सुख देखा ही नहीं,
बचपन गुज़रा उसका छोटू यह दे वह दे सुनते - सुनते।
कौन-सा है...
वह ईश्वर जो नन्ही खुशियों को जला दे।
रोते बिलखते देखे आँखें उसकि मासूम सपने।
बचपन उसका कहीं फूल,
तो कहीं फल बेच रहा है।
भूखा प्यासा घूमता बचपन उसका सड़कों पे।
जिस वक़्त को खुशियों के दामन से भरना था,
उसे गमों से भरा गया है।
वह मासूम आँखें सिसकियाँ लेती,
पर रो नहीं पाती।
जिन हाथों को पकड़ने थे।
खिलौने...
उन हाथों ने पकड़ लिया है,
ईटों का बोझ।
किस वक़्त लिखा था।
भगवान...
तूने मासूमों का किस्मत।
मासूम ह्दय पर लहराए मजबूर मजदूरी।
किलकारियों से भरी भूख ने,
नहीं देखी धुप,
और...
छाव बस काम करते ही रहै।
जिन हाथों में होनी चाहिए थी,
किताबें...
अब वह हाथ मजदूरी की बेड़ियों,
से बन्ध चुके हैं।
सो गया वो आसूं पिकर,
जब उसे हंसना था।
कोई पूछे यादे उसकि,
क्या बताए वो?
जिसका बचपन सड़कों पे गुज़रा हो।
यही है आज का भारत।
यही है बाल श्रम भारत।।