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क़लम-ए-अम्वाज kunu

Drama Inspirational Thriller

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क़लम-ए-अम्वाज kunu

Drama Inspirational Thriller

मैं बड़ा हुआ

मैं बड़ा हुआ

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वक़्त बीते मैं बड़ा हुआ

मुझे पता सबके बाद हुआ

तालियां बजी सौर शरावा हुआ

आखिर जिम्मेदारीयों का ताज मेरे शीश पे मढा गया


बड़े-बड़े आँखों से मेरे हौसले रौंदे गए फिर मेरे कमियों को

अट्टहास के हाथों नीलाम कर

वो जश्न काफ़ी आकर्षक हुआ

धीरे धीरे मेरे चाह पे अंधकार का लालिमा छाया

और एक एक कर परिंदे दम तोड़ आजाद हुए

लहू बहा,आंसू गड़े और

उस वास्तविकता की रक्षा में संवेदनशीलता ,


चीख, क्रांति दब वहीं सब वजूदहीन हो गए

सबने कहा लड़का पाषाण सा सख्त है

पीठ थपथपा हजारों हाथ मेरे अधमरे भाव को

कुचल कुचल मार डाले और इसे मेरा सौभाग्य बता


मुझे अभिशाप के काबिल बना दिया

बदन पे त्याग के सोकैट जो लहू से रंगे थे

दागे गए और फिर सबने कहां मैं पुरुष हूँ

उस दिन सबके चेहरे पे एक नया सवेरा झलका

मगर कौन जाने ख्वाबों को मूंद कहीं एक सूर्य अस्त भी हुआ। 


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