चाँद घिर गया (Day 16, fantasy)
चाँद घिर गया (Day 16, fantasy)
पच्छिम के घने जंगलों में
लंबे स्याह लबादे से
सिर से पाँव तक ख़ुद को ढॅंके
बिन बादल आसमान में
तीखी चकाचौंध ले
आसमान में डटे
सूरज से छिप कर,
डरी घबराई रात जो
घंटों से बैठी थी
सूरज के ढलते ही क्यों
झटपट निकल आयी थी…
जा बैठी थी, आसमान से उल्टे लटकते
बादलों के पेड़ तले
लबादा फैला कर, आराम से बैठ कर
गंदी-मटमैली गठरी खोल कर
चाँद की मोटी, रोटी निकाली थी…
निवाला तोड़ने ही वाली थी
कि, हाथी से बादल ने
रोटी झपट ली
परथन लगी चाँदनी
बादलों पर झड़ गयी…
कोरे चमक गयीं
तेज़ी से लपक भेड़िये बदल ने
चाँद को छीन लिया
जोर से दबोच लिया
अब सभी बादलों ने घेर लिया
उसे भागने का मौका ही नहीं दिया
लगता है बादलों ने चाँद को निगल लिया
हाय ये प्रकाश! एकदम मिट गया…
देखो वहाँ थोड़ा उजाला दिखा
क्या चाँद भाग कर वहाँ छुपा?
इस हलचल से बेख़बर
भूखी रात बेहद थकी
गुपचुप निकलने लगी…
तभी वहाँ पवन का झोंका आया
चाँद को उसने मुश्किल में पाया
लपक कर उसने अत्याचार रोका
शीघ्रता से बादलों को यहाँ-वहाँ फेंका
बादलों के चंगुल से चाँद को बचाया
समूचा था चाँद या कोई हिस्सा गंवाया?
उजले बदन पर चोटें लगी थीं
मन्द ही सही पर सांसें चल रही थीं
बेचारा डर कर सफ़ेद पड़ा था
नीले पड़ी थीं पर ज़िन्दा बचा था
रात उसे छोड़ कर चलती बनी थी
पलट कर उसकी हालत न देखी थी
चढ़ते उजास से धुँधलाया चन्दा
नीली सी चादर पर बेसुध पड़ा था
सूरज की किरनों ने उसके बदन पर
पीर-हरण मरहम लपेटा हुआ था …