माँ कि ममता
माँ कि ममता
ममता का नाम माँ हैं,
माँ से बढ़कर कोई नहीं।
स्वर्ग सा ......
आभास होता उसके चरणों में ।
माँ का प्यार एक तरफ,
और....
जगत के सारे सुख एक तरफ ,
तो भी सन्तुष्ट ना हो पाऊंगा।
इस दुनिया में धन - दौलत रुपए पैसे ,
सब माँ के प्यार आगे फिके ।
आकाश जैसा मन माँ का ,
धरती सा है प्यार उसका।
संसार कहे मंदीर - मस्ज़िद जाओ ,
मेरा तो माँ में ही जग बसा है ।
जब भी गिरा मैं ,
उसने मुझे उठाया है ।
खुद को वह भूली मुझे सम्भाला ने में।
मेरे लिये तो ,
माँ तू ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश है ।
जब हारा दुनिया से में माँ ,
तूने मुझे जिताया है ।
जब भी खिलाती खाना गिनती भूल जाती है,
पढ़ी नहीं फिर भी चिकित्सक बन जाती है ।
माँ तू एक वादा कर मुझसे ,
कभी मेरे माथे से हाथ अपना लोगी ना।
माँ तेरा ऋण किस तरह चुका पाऊंगा,
जितना दिया उसका आधा भी ना लौटा पाऊंगा ।
माँ कि ममता अजर है ।
माँ कि ममता अमर है ।।