नशा मुक्ति
नशा मुक्ति
मानव तेरा अनमोल है जीवन
क्यों...
इसे तू धूएं में उडा रहा ?
अभी दुध के दांत टुटे नहीं,
फिर भी गुटकों से मुंह भर रहा है।
व्यर्थ ही मत जाने दो जीवन को,
अभी समय है...
कुछ करने को।
खुद को मत झोकों तुम नशे की आग में।
क्यों मौत को गले लगाना चाहते हो।
नशा करने से कभी किसी को केंसर,
तो किसी ने अपने प्राण त्यागे हे।
लिखा रहता भले तम्बाकू पर,
सेहत के लिए हानिकारक...
फिर भी बड़े चाव से खाते हैं।
विमल के दाने-दाने में केसर कह कर,
बाज़ारों में खुला जहर बेच रहे।
खाके गुटके थूके हर जगह
ना देखे गली, मोहल्ले या सार्वजनिक क्षेत्र।
कोई कहता मुझे गुटका खाए बिना पचता नहीं खाना
अरे...
खाना तो पच जाएगा,
मगर...
किसी दिन तुम भी पच जाओगे।
कुछ तो सब के सामने खाते पिते,
और....
कुछ छुप-छुप कर।
जब उठते चिलम के छल्ले
खुशी से लोट-पोट हो जाते है।
मुंह पर खाद खुजली हो जाता है ।
फिर भी बड़े चाव से गुटके खाते हे ।
क्यों अटक जाते हो धूम्रपान पे ही ?
क्या मिलता है
तुम्हें ये सब कर के ?
क्यों खुद के हाथों से ही
खुद ही अपने पैरों पर
कुल्हाड़ी मार रहे हो?
छोडों अब नशे की लत।
नशा मुक्त हो देश हमारा।।