पुरुषत्व की परिभाषा
पुरुषत्व की परिभाषा
बच्चे से जब जवान हो,
बढ़ती है परिजन आशा,
विकास में हो भागीदारी,
ये पुरुषत्व की परिभाषा।
पुरुषत्व वो गुण होता है,
जो करता जनहित काम,
हर क्षेत्र में जन नाम हो,
जीवन बन जायेगा धाम।
हर युग में हुये पुरुष वो,
मिटा डाले जिन्हें संताप,
धर्म कर्म की बेल फैली,
उड़ ये पल में सारे पाप।
एक से बढ़कर एक हुये,
किसका यहां पे नाम लूं,
किस गुण की चर्चा हो,
हर मानव को पैगाम दूं।
भगवान राम अवतार ले,
राक्षसों को संहार किया,
पुरुषत्व की दी परिभाषा,
अमन का ये पैगाम दिया।
भागीरथ का जन्म हुआ,
लाया वो धरती पर गंगा,
जीवन भर वो संघर्षमय,
कर गया जन भला चंगा।
श्रीकृष्ण अवतार लिया,
पुरुषत्व का दिया पैगाम,
पापी मिटा दिये पल में,
धर्म कर्म का फैला नाम।
देव आये हर युग में तो,
पुरुषत्व का ले सिर भार,
जुटे रहे काम में हरदम,
मानी नहीं कभी भी हार।।
पुरुषत्व की है परिभाषा,
सुखमय जीने की आशा,
पुरुषत्व जब छिन्न होता,
बढ़ जाती बड़ी निराशा।
देश धर्म की बात चले,
पुरुषत्व ही आता काम,
पाप,बुराई,अधर्म मिटा,
करते आये जग में नाम।
वीर हुये बड़े धीर हुये,
चमका जहां में सितारा,
बुराई जग की मिटाकर,
जन जन का बना प्यारा।
गांधी,सुभाष,भगत सिंह,
लेकर आये पौरुष जहां,
अंग्रेजी हुकूमत खत्मकर,
पाई अपनी एक पहचान।
हिम्मत से सदा काम लो,
चलती आशा व निराशा,
अपने कर्मों से बनती जग,
पुरुषत्व की यही परिभाषा।।
