बादल
बादल
छोटा बादल का टुकड़ा
सफ़ेद
जैसे अभी अभी नहा कर आया
ठंडी हवा की उंगली थाम
खिड़की पर दस्तक देकर
कहता है बाहर आ जाओ
चलें वहां दूर
पहाड़ की ढलान पर
धूप आँख मिचौली खेल रही है,
एक छोटा सा
धूप का टुकड़ा मिला
अपनी चादर बिछा, बोला
बैठो न
मन मेरा और बादल
उस महकती गुनगुनी
धूप की चादर पर बैठे है
बादल ने छुआ
शर्म की ठोड़ी को धीरे से,
और कहा
अकेले न मुस्कुराओ,
उनकी यादों से हमें भी मिलाओ!