Dr. Saroj Acharya

Abstract Romance

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Dr. Saroj Acharya

Abstract Romance

बादल

बादल

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छोटा बादल का टुकड़ा

सफ़ेद

जैसे अभी अभी नहा कर आया

ठंडी हवा की उंगली थाम

खिड़की पर दस्तक देकर

कहता है बाहर आ जाओ

चलें वहां दूर

पहाड़ की ढलान पर

धूप आँख मिचौली खेल रही है,

एक छोटा सा

धूप का टुकड़ा मिला

अपनी चादर बिछा, बोला

बैठो न

मन मेरा और बादल

उस महकती गुनगुनी

धूप की चादर पर बैठे है

बादल ने छुआ

शर्म की ठोड़ी को धीरे से,

और कहा

अकेले न मुस्कुराओ,

उनकी यादों से हमें भी मिलाओ!


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