बेवज़ह
बेवज़ह
किसी एक समय
किसी एक जगह,
मैं मिली थी तुम्हें
तुम मिले थे मुझे
बेवज़ह
या, वज़हों की इबारत लिखने को मिले
दिन और रातें
भाग रहे थे
और मुट्ठी में छोड़े जा रहे थे
साँसों की सुगंध
हम मिले क्यों थे?
जब मिलना ही न था
हम बस मिलते रहे
अल्फ़ाज़ों के साथ
उस साल सावन ज्यादा गीला था
उस सावन, टूट कर गिरे पेड़ पर
हरे पत्ते निकल आये थे
देखा था न तुमने!!!
उसके किनारे बैठ कर
जब तुमने मेरे खुले बालों को छुआ था
कहा था
फिर आता हूँ न!