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Dr. Saroj Acharya

Abstract Others

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Dr. Saroj Acharya

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पीर

पीर

1 min
200


कुछ समय हुआ

एक पीर मिला

जाने क्यूँ, मेहरबान सा

अजीब सी कशिश

अपनी आँखों में और मुस्कान में लिए

कहा, मांगो!

कुछ दर्प से भरी

कुछ आज़माइश के लिए

मैंने कहा, प्यार दे दो!

उसने रुमाल में एक नाम और

खुशबू बांध दी, कहा..मिल जाएगा!

उस रुमाल पर काढ़े नाम और खुशबू ने

मुझे ढूंढ लिया

मैं ढूंढ रही हूँ उस पीर को हाय, बेअक्ल मैं

प्यार के साथ वक़्त क्यों न माँगा!


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