बेनाम रिश्ता
बेनाम रिश्ता
जानते तो हैं
इस रिश्ते की उम्र नहीं, नाम नहीं
मुक़ाम नहीं मंजिल भी नहीं
फिर भी
धीरे धीरे सुलगता है
तपता भी है कभी
जब हम न होंगे
तुम्हें दे जायेंगे ये
आंच,
ठंडी होती उम्र और ख्वाहिशों को
धीरे धीरे तापना
और उस तपिश में
आँखों से मुस्कुराना
और दिल से सोचना
वो थी न बस !