अव्वल दर्जा मिल रहा
अव्वल दर्जा मिल रहा
जमीं पर रहने वालों को
आसमां की चाहत थी
अपने ही शहरों में
ना बेटिओं को राहत थी
सुनकर बड़ी तकलीफ़
होती थी
जब गर्भ में बेटियाँ
मारी जाती थी
आज लगता है की
भ्रूण हत्या सही था
क़ानून प्रशासन सो रहा है
अब तो लगने लगा है की
सब उसी के कहने पर हो रहा है
अर्थ-व्यवस्था तो संभली नहीं
बिक रहा हैं देश का अंग-अंग
आये दिन खुलेआम हो रही हैं
हत्याएँ
संविधान की हर रोज
धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं
बीफ़(मांस) निर्यात में अव्वल दर्जा
मिल रहा
शिक्षा का स्तर दिन ब दिन ढह रहा है
अब तो लगता हैं राजित राम रंजन
छोड़ के इस देश को
कहीं औऱ की नागरिकता ले ले....!
