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अथक शांति

अथक शांति

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नीरव सा है वातावरण

दूर-दूर तक बर्फ से ढकी

पहाड़ों की चोटियाँ

हरे-भरे पेड़

स्थिर मगर गतिमान नदियाँ

ऊँचाई से गिरती हुई झीलें

हिमाच्छादित है सभी कुछ

एकसार करते हैं

समूची धरती को

जहाँ तक नजर जाती है

जैसे सफेद कफ़न ओढ़े

शाँत पड़ी देह हो कोई

मुर्दा खामोशी भर गयी हो

उसके भीतर,

अब कभी नहीं उठेगी

भले ही दिन का सूरज निकल आये

और पिघला दे

सतह पर फैली हुई बर्फ़ की चादर।


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