अर्ज किया है
अर्ज किया है
वीराना गर कब्जा करे जहन को तो
क्या हैसियत हजार मह्फिलों की
करीबों कि मज्बूरी और रकीबों की वफा में
किस कदर फरक है कोइ बत्लाये
हमको समझे ये वक्त क्यों कर रुक जाये,
ये सिल्सिले तो जिन्दगी के चलते ही बयान होते हैं
बस एक ख्याल है जो जिन्दगी क दामन छोड़ता है,
साँसें तो फकत उम्र क हिसाब रखती है
दोस्त एक दुश्मन क हाथ थाम्के आया
हम समझे के दुश्मन दोस्त हो गया
यारी दोस्ती प्यार मोहबत क्या हसीन फल्सफा है
बेखबर साँसें इसी ख्याल में दम तोड़ देती है।
हम तो हसीन मन्जर के मुन्तजिर थे;
न जाने कब उम्र के दामन से वकिफ हुए
उमर कि इन्तहा है मगर चाहते बेइन्तेहा,
कौन येह फैस्ला करे क्या चाहा और क्या हासिल हुआ।
तकदीर रुलाती है अक्सर हम जानते हैं,
बस उस पर कभी हँस कर देखो
तमाशायी अन्दाज ही जुदा होगा
या तो हँसते हमारे काबू मे हो या फिर
उल्फतें हमें बेकाबू न करे,
दिल को जो मन्जूर वो बेशक जहन को कबूल
शिक्वे गिले ऐत्राज और नराज्गी,
उसमें गर मजा है तो दिल बेचारा बेवजह मोहबत तलाश्ता है
जहाँ गवाह और सुबूत तुम्हारी हैसियत कि पहचान है,
वहाँ कैसे दिल कि चाहत क फैसला खुद्मुख्तार होगा
बहार तो बेशक आती और जाती है
हम तो यूँ ही सदाबहार के इन्तजार में हैं।