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Rajinder Verma

Abstract

5.0  

Rajinder Verma

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अर्ज किया है

अर्ज किया है

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435


यारी, दोस्ती, प्यार, मोहब्बत क्या हसीन फलसफा है

बेखबर सांसें इसी ख्याल में दम तोड देती है 


हम तो हसीन मंजर के मुन्तजिर थे;

न जाने कब उम्र के दामन से वाकिफ हुए 


उमर कि इन्तहा है मगर चाहते बेइन्तेहा,

कौन यह फैसला करें क्या चाहा और क्या हासिल हुआ 


तकदीर रुलाती है अक्सर हम जानते है,

बस उस पर कभी हॅंस कर देखो तमाशायी अन्दाज ही जुदा होगा 


या तो हसरतें हमारे काबू में हो या फिर उल्फतें हमे बेकाबू न करें,

दिल को जो मंजूर वह बेशक जहन को कबूल 


शिकवे गिले ऐतराज और नाराजगी, उसमें गर मजा है तो दिल बेचारा बेवजह मोहब्बत तलाशता है 


जहाॅं गवाह और सुबूत तुम्हारी हैसियत की पहचान है,

वहाॅं कैसे दिल की चाहत का फैसला खुद्मुख्तार होगा 


बहार तो बेशक आती और जाती है

हम तो यूॅं ही सदाबहार के इन्तजार में है


शायद आंखें नाराज है खुद से जो अंधेरे में नाकाम होती है

फकत दिल पे तवज्जो दो तो मुकम्मल जहान दामन में सिमटा पाओगे 


हम तो मोहताज है एक सोच के

देखो तो बस एक जर्रा है

मगर समझो तो कायनात सिमट के रह जाये 


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