अर्ज किया है-3
अर्ज किया है-3
आरजू है वक्ते शिकश्त की,
कोई बस हमारे मुस्तक्बिल से वाकिफ तो करे
हमने तो मशकत की थी मन्जिल तक
अब आगे राह से तारुफ्फ कराये कोई
कुछ कहना गर दावते मुश्किल्यात है
फकत चुप रहना भी हस्ती पे सवाल है
क्या खामोशी का आलम होगा गर
अल्फाजों की तर्जुमानी वादों में बयान हो
मक्सद का तो इल्म था, बस जिन्दगी के
सौदे मे कुछ कमी सी रह गयी
तक्दीर तो अ्मली जामा पेहना चुकि,
फिर क्यो मुन्तजिर है ये तिश्नगी जहन में
फिर सुबह आफ्ताब के दीदार हुए
फिर एक बार आरजू की उमीद जाग उठी
वक्त निकला,अफ्ताब डूब गया
कल फिर आयेगा शायद
राही न होते तो पथर होते
बस यही पेहचान काफी है
कहाँ खो गयी पह्चान हमारी
जहान तो हस्ती के हिसाब में गुम है।
हमे मजूर है कयामत तक की इल्त्जाह
कोइ अग्ले पल क भरोसा तो दे
किस कदर डूबी उमीद जैसे बर्सात मे ये अश्क
डरता हूँ तीरे सितम कि इन्तेहा से,
बस दुआ है जिगर कि बुलन्दी कि
हस्ती पे दावा कर्ती है,
ये चाहत तो बेशक जान लेवा है
चान्द की उमीद नागवारा न हुइ
फलक मे हमे चाहने वाले तो है
हम वाकिफ है अप्ने मुस्तक्बिल से,
वफा तो बस दूस्रा नाम है
कैसे बयान करोगे गम की दास्तान्,
दर्द देने वाले को तो जरे क इल्म नही
दुख न आये ये तो मुम्किन नहीं,
दुखी न हो ये हमारा फैस्ला हो सक्ता है
हर आरजू में आह है हमारी
कैसे न मन्जूर हो अखिर सन्सो का दावा जो है
दिल की कसक तो रूह मे बस्ती है,
कैसे सम्झेङे ये मिटी के पुत्ले
वक्त को अघोश मे लेके चलो,
जिन्दगी एक उडन खटोले की सैर हो जायेगी
गर ये इन्सानी जहन न होता,
दो वक्त क खाना क्या हसीन नीन्द सुलाता
अन्धेरों में गुम रह्कर ये पेह्चान भी खूब है,
फकत खुद क साया तो साथ नही चोडेगा
मोहब्बत करो इन्सानों से और इस्तेमाल
करो चीजों का, नाकी इस्का उल्टा
किस कदर लम्बा ये जिन्दगी क इम्तहान है,
नतीजे आने तक ये सब्र बेशक दम तोड़ देगा।