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Rajinder Verma

Abstract

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Rajinder Verma

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अर्ज किया है

अर्ज किया है

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कैसा ये जहन का आलम है, फुर्सत में भी तन्हाई के मुन्तजिर है 


हम तो कह के बदनाम हुये, चुप रहते तो कुछ तो नाम होता 


इल्म जन्नत का है मगर जहन कि तलाश अभी जारी है


मुकम्मल मोजु है मगर इन्तेहा सरहदों की मुन्तजिर नहीं


जिन्दगी सुकून से बसर हो गर तमाम आरजू कि हदें इन्तेह मुकअर हो जाये;


बस ये ख्वाबों का दखलेंदाज अन्दाज ख्वहिशों को बेकाबू न करें


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