अर्ज़ किया है
अर्ज़ किया है
कुछ तो है हवाओं में
वर्ना ये हलचल
दोनो तरफ बराबर न होती
ये ज़ालिम हस्ती है न
जो हमारा मुस्तक्बिल
पर्दे में ही कायम रखती है
वर्ना हम भी शख्स हैं
कुछ नाम के
करीब कब रकीब बन गये
खबर न हुई
हम तो फर्ज़ मोहब्बत का
कायम कर के बदनाम हुये
वक्त एक सिकन्दर और
हम सब तमाशाई
कौन ये समझा के कब
इन्तहा जिन्दगी रुक जाये
और ये सफर उम्मीद से
पहले फनाह हो जाये
नींद और मौत के दर्मयान
बस ख़्वाब भर का ही तो
फासला है
नींद है तो ख़्वाब है
नकली चेहरे कि मज़बूरी से
खुद को पहचानो वर्ना
असली जिंदगी ख़्वाब बन
जाएगी
वीराना गर कब्ज़ा करे ज़हन को
तो क्या हैसियत हजार
महफिलों की
करीबों कि मजबूरी और
रकीबों कि
वफा में किस कदर फर्क है
कोई बतलाये
हमको समझे ये वक्त क्यो कर
रुक जाये, ये सिलसिले तो
जिंदगी के चलते ही बयान होते है
बस एक ख्याल है जो जिंदगी
का दामन छोद्द्ता है ,
सांसें तो फकत उम्र का हिसाब
रखती है
दोस्त एक दुश्मन का
हाथ थम के आया
हम समझे के दुश्मन दोस्त
हो गया