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अर्ज़ किया है

अर्ज़ किया है

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सूरज सारी उम्र जलता रहा,

अब अंधेरा तलाश्ता है

आगोश में ख़्वाब देखने के लिये।

नहीं जानता ये पाने के लिये

खुद को फ़ना होना है 


कैसी ये उलझन,

जिसे भूलने कि कोशिश में हूँ

उसका नाम ही याद नहीं

आ रहा!


ये भी होता है, आप अल्फाजों में

उलझे रहते है और जिन्दगी

खामोश निकल जाती है 


कल तक चलते थे जो ऊंगली

थाम के, आज अंगूठा दिखा के

निकल लिये 


पूछते है वो के इश्क से

क्या फायदा,

कोई बतलाए हमे के फायदे से

क्या फायदा !!


उपरवाले का सजदा मुकम्मल है

लेकिन ऊपर जान इन्सानी

फितरत को मंज़ूर नहीं ।


रौशन थी वो सपनों कि दुनिया

बस आँख खुली और अंधेरा छाया 


जिन्दगी मुकम्मल क्या खूबसूरत है,

बस ज़ालिम ये साँस धोखा देती है 


कुछ हमने कहा और कुछ

तुमने समझा, रंजिश बस

मौकाये इंतज़ार में थी 


सारी उम्र ख्वाहिशों के चक्रव्यूह में

मसरूफ थे।

जिन्दगी में अफ़सोस तो लाज़मी था 


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