अर्ज़ किया है
अर्ज़ किया है
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कलम और दवात तो
फनाह हो गये
अब कैसे कोई दिल
के एहसास बयान करे
कैसा ये तन्हाई का
आलम है
अब तो हवा भी
शोर सी लगती है
क्या हसीन मंजर हो
गर ये बेलगाम जिन्दगी
हमारे इशारे की
तामील करे
जहनी फितरत कौन
समझा है,
हम तो उम्मीद पर दावा
करते है