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Rajinder Verma

Abstract

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Rajinder Verma

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अर्ज किया है

अर्ज किया है

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वक्त रहते गर बात बन जाती, फकत यादें क्या हसीन हो जाती

रुख हवाओं का तब्दील होगा; बस एक जिन्दगी का दामन न छूते 


या रूह कि गुलाम है ये जिन्दगी या फिर तकदीर कि मुहाफिज

कैसे न कबूल हो, कोई मुख्तलिफ रास्ता तो नजर करें


जिन्दगी इस कदर करीब आयी,

के उसकी अागोश अब साॅंसों के घुटन का सबब बन गयी 


जिन्दगी सफर है और हम तो उसके हमसफर है;

राह में कोई साथ दे वह उसकी नेमत है;

वर्ना सफर तो लाज्मी है 


वक्त हसीन तो सब रङीन

फकत ये नजारा कायम रहे और पलकें बन्द न हो 


जब सब एक मिथ्या है फिर क्यों हकीकत की दास्तान जिन्दा है 


मुकम्मल और गुर्वत एक नजरिया है जनाब

नजारा नीचे तो हम साहुकार और जरा उपर का नजारा सामने आये तो हस्ती बेकार

सिधा देखो जनाब तो सब बरकरार 


जिन्दगी की आज्माइश रुबरु हो जाये,

बशर्त ये के हमारे इरादों के दर्मियान बस ये तकदीर का दखल अन्दाज न हो 


साॅंसों का कोई मुस्तकबिल नहीं लेकिन वाह रे उम्मीद

जो जिन्दगी को कयामत तक जिन्दा रखती है


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