अर्धनारीश्वर
अर्धनारीश्वर
जब से उसने जाना स्त्री -पुरूष होने का मर्म
नजरबंद कर लिया खुद को
अंधेर काल कोठरी में
मगर वहां भी पीछा करती पहुंच गईं
वे डरावनी आवाजें
वे डरावने दृश्य
जिनसे डरकर एक कोने में
सिमटकर बैठा था वो
कोई कह रहा था छक्का
किसी ने बुलाया हिजड़ा
तो किसी ने कहा किन्नर है तु
एक तो छीनकर किताबें
सिखा रहा था उसे तालियाँ बजाना
दूसरा जबरदस्ती सिखा रहा था
उसे कमर मटकाना
जिस समाज को वो सभ्य समझता था
आज उसका सच जानने पर
वह असभ्यता पर उतर आया था
और इतना डरावना हो गया था
कि उसके डर से कांप रहा था वो
घर के आखिरी कमरे के कोने में भी
उसे समझ नहीं आ रहा था
कमी उसमें थी या इन सबमें
कान बंद कर लेने पर भी
उसे सुनाईं दे रहा था
बाहर खडे़ लोगों का अट्टहास
वह डरता जा रहा था
तभी यकायक कमरे में
चमकी एक रोशनी
उस रोशनी से निकली एक तस्वीर
आधा नर आधा नारी
उसने पूछा कौन हो तुम?
तस्वीर ने कहा अर्धनारीश्वर
उसने पूछा कौन हूं मैं ?
तस्वीर ने कहा अर्धनारीश्वर
वह उठ खडा़ हुआ
और जोर से चीखा
ये धरती मेरी है तुम्हारी तरह
ये आसमां मेरा है तुम्हारी तरह
ये हवायें, ये सागर सब मेरे हैं तुम्हारी तरह
ये समाज भी मेरा है तुम्हारी तरह
मैं भी इंसान की औलाद हूं तुम्हारी तरह
सुना तुमने! जो मेरा है मुझे चाहिए
और मैं लेकर ही रहूंगा
वह चीखता जा रहा था
वह चीखता गया
जब तक बंद नहीं हो गई
वो डरावनी आवाजें
वह चीखता रहेगा
जब तक स्वीकारेगा नहीं उसको
उसका अपना परिवार
उसका अपना समाज और स्वंय वो .....