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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Abstract Tragedy

4.5  

Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Abstract Tragedy

थके हुए चेहरे

थके हुए चेहरे

1 min
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हर जगह पे थके हुए चेहरे मिलते है

रोशनी में भी वो खोये हुए लगते है

उनकी आंखों का नूर गायब लगता है,

जैसे सर पे हजार मन बोझ लगता है,

आजकल हम इंसान लोग तो क्या,

माटी के खिलौने भी थके हुए लगते है

आजकल हर चेहरे का निखार गायब है

सबने पढ़ ली जैसे उदासी की आयत है

हर चेहरे के अक्स आज पराये लगते है

हर जगह पे थके हुए चेहरे मिलते है


बचपन के हंसी चेहरे अब कहाँ मिलते है?

बचपन वाली ताजगी अब ग़ायब है

बड़े क्या हुए, चेहरे से जुदा हुआ रब है

उम्मीद बोझ तले टूट रहे चेहरे गजब है

बचपन चेहरे को लील रहा मोबाइल कप है

चेहरे पे चेहरे लगाने से हुआ ये सबब है

खत्म हो रहे साखी असली चेहरे सब है

चेहरे का असली निखार, चेहरे पर ही रहे,

इसके लिये चेहरे पे रखना साखी सच है


तेरा आज क्या, कल क्या, परसों क्या?

हर क्षण रहेगा तेरा हमेशा जन्नत है

यदा-कदा चेहरे ही ताजगी भरे मिलते है

जो सत्य के दरिया में डूबे हुए मिलते है

इनके लिये लाख शूल भी होते फूल है,

ये चेहरे जो महकने के लिये नित लड़ते है



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