शत्रु
शत्रु
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स्वास्थ्य का शत्रु होता सदैव रोग है,
सात्विक विचारों का शत्रु भोग है,
क्रोधाग्नि विनय को मृत करती है,
जीवन सुख दुःख का संयोग है।
सदाचार का शत्रु होता है दुराचरण,
सौंदर्य युक्त प्रकृति का शत्रु है प्रदूषण,
जीवन मानो कुरुक्षेत्र का है एक मैदान,
जहाँ स्वजनों के मध्य युद्ध है अकारण।
आत्मिक प्रेम का शत्रु है तन की वासना,
सर्व व्याधियों का एकमात्र इलाज है उपासना,
लोभ, मोह, काम, क्रोध जीवन के हैं शत्रु,
भव सागर से पार कर देती है आराधना।