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Abhishek Nema

Abstract

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Abhishek Nema

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ये उन दिनों की बात हैं

ये उन दिनों की बात हैं

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ये उन दिनों की बात हैं जब बच्चे थे।

कपड़े भले ही गंदे पर मन अच्छे थे।।

छोटे बड़े अपने पराये का भेद नही था।

दूजी जीत निज हार का खेद नही था।

आसमान मे उड़ने की सीमा नही बनाई थी।

माँ बनकर जगजननी पृथ्वी आई थी।


उमंग उल्लास भौंरे से खिलखिलाए थे।

कितने सुंदर सपनों के ताजमहल बनाये थे।


विद्यालय सा स्वर्ग सुख अनुभव पाया था।

गुरु बन स्यम सप्तऋषिगण आया था।।


उजले मन की स्वच्छ धरोहर पाली थी।

पराये भ्रम तृष्णा की नही कोइ जाली थी।


देश भक्ति की अनुपम ज्योत जलाई थी

मानवता का लिया संकल्प बांधी कलाई थी।


वीर शिवाजी प्रताप गाथाएँ गाई थी।

लक्छमि रानी पन्ना धाय सी माई थी।


दे सको तो दे दो पुराने दिन प्यारे।

चाहे ले लो धन सुख सारे।


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