" अपनी काकी "
" अपनी काकी "
होत भुन्सारे उठे काकी।
पूजा, पाठ करे काकी।। १
बड़ी बिंदी, धुतीयाँ खादी।
मुँहफट सुंदर काकी सादी।। २
आँखे उम्दा, कमर साजी।
घर की बड़ी काकी आजी।। ३
सिलाई कढ़ाई काकी आती।
खिलाये मोड़ा, मोडी नाती।। ४
चार टेम् सपरत हैं।
पीटे औहें जो निपरत हैं।। ५
गेंहू बीने, सबको चीन्हे।
दुखियारों को नुक्सा दीन्हे।। ६
टेरे दद्दा, फूके फुकिनी।
रोटी थोपें काकी अपनी।। ७
भाजिया कढ़ी काकी खाये।
डांटे, हँसे खूब चिढ़ाये।। ८
जूठों, मीठो काकी मानें।
भलो बुरों सब काकी जाने।। ९
दांत निपोरन नही पुसाये।
बड़े छोटों को खिसयाये।। १०
बेटा, बहुये काकी डरती।
पड़े पाँव सेवा करती।। ११
चिल्लायें पर काकी भोली।
बुरी नही हैं उनकी बोली।। १२
घरीघरी काकी पान खाये।
उधम करे मोडा चिल्लाये।। १३
होत त्यौहार चंदा देती।
पाई पाई हिसाब लेती।। १४
प्रदोष व्रत काकी पुसाये।
रहे भूखी, संजा खिचडी खाये।। १५
काकी नहींं कुनबे को नूर थी।
मन मे बसी काकी चली गई दूर थी।। १६
