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Saurav Saket

Abstract

4.5  

Saurav Saket

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मजदूर

मजदूर

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मैं भी लौट कर घर जाऊंगा,

गर रोटियों के हिसाबों से

ऊबर जाऊंगा।


मेरी आंखों में भूख भी देख, 

मैं इस हादसे में नहीं तो

उस हादसे में गुजर जाऊंगा।


मेरी मौत पर सियासत कैसा,

जो सड़कें जिंदगी थी,

मैं उसी सड़कों पे मर जाऊंगा।


तुम अपने आप को भी

माफ कैसे करोगे,

कल शर्म बन कर जब

आंखों से उतर जाऊंगा।


मेरे सिने में दर्द बस इतना है कि,

फलदार पेड़ हूं

जड़ से उखड़ जाऊंगा।


जाने वाले सब घर गए,

मैं बेघर हूं इसी कोने

में ठहर जाऊंगा।


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