साकेत के लफ्ज़
साकेत के लफ्ज़
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हर आसमां के हिस्से महताब नहीं होता।
इश्क चाहे जितनी भी हो पहली-पहल वाली बात नहीं होती।
अब तेरे ठोकर ही तुझे चलना सिखायेंगे
जिंदगी की कोई किताब नहीं होती।
हर डूबती कश्ती को साहिल मिलें
इश्क में तो इतनी खूबसूरत ख़्वाब नहीं होती।
तूने छांव में बैठकर दरख़्तों को काटा था।
वर्ना इतनी बेहिसाब अजाब नहीं होती।
जिस्म बिकती है यहां अश्कों की अदायगी पे।
रुहें- इश्क की अंजुमन में कभी हिसाब नहीं होता।
अब उन्हीं बातों पे तेरा रोना जायज़ नहीं " साकेत"
मरे जज़्बातों की, आंसूओं का कभी जवाब नहीं होता।