मेरा ज़मीर
मेरा ज़मीर
जश्न खामोशी का इस शोर से मनाया जाए।
सर जिसका भी उठे उसे दबाया जाए।
अब आँखों को ही बोलनी होगीं हर सच्चाई,
जुबां काट कर जब कातिल को बचाया जाए।
मेरा जमींर भी एक रोज पुछेगा मुझसे,
गीत वही क्यों लिखा, जो दरबारों में गाया जाए।
मेरे पसीने की जिससे-बु-आती हैं।
उसी मिट्टी में मुझे दफनाया जाए।
कँपकँपाती हाथों का कहना हैं, घर चलों,
और घर की जरुरत कहती हैं कुछ और कमाया जाए।