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Saurav Kumar

Abstract

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Saurav Kumar

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साकेत के लफ्ज़

साकेत के लफ्ज़

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वो रिश्ता भी मुझसे खुब निभाया होगा।

मेरे क़ातिल के हाथों में जिसने खंजर थमाया होगा।


मेरी आंखें फक़त यूं ही नहीं रोई होगी।

होकर मेरा, ये तेरी तस्वीर छुपाया होगा।


सफ़र की मुश्किलें भी उसका सजदा करती होगी।

सफ़र की माटी को जिसने माथे से लगाया होगा।


आज उसके आबरू का तमाशा हो रहा है।

कल तक जिसने खुद को दरों- दिवार से भी छुपाया होगा।


लहरों ने जब तोड़ी होगी अपनी हदें सारी।

साहीलों ने तब समंदर को आवाज लगाया होगा।


 "साकेत"वो शख्स भी कम ऐयार न होगा।

खिलौने तोड़ कर जिसने बच्चों को मनाया होगा।


   


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