साकेत के लफ्ज़
साकेत के लफ्ज़
1 min
31
मैं अब आहें नहीं भर रहा हूँ,
कोई आकर मेरे ज़ख्मों को दुखाओ।
उसकी तमन्ना है कि मैं कांटों पे चलूँ,
कोई मेरे रास्ते से फूलों को हटाओ।
मैं उससे ही पूछ लुंगा गुनाह अपना,
कोई उसे मेरी कुरबत मैं तो लाओ।
शहर को उसकी उंगलियों की कलाकारी पे नाज़ है,
कोई उसकी हाथों की साज़िश तो दिखाओ।
मैं अब तौरे- जिंदगी से थक गया,
कोई आकर मेरा किरदार तो निभाओ।
मुसलसल सारे मुजरिम रिहा हो रहें है,
ऐ खुदा अब तू ही फैसला सुनाओ।
