न चाह है ना राह हैं।
न चाह है ना राह हैं।
न चाह है ना राह है,
बस, एक पनाह है,
पर आशाएं कम
निराशा की भरमार है।
मनुज हृदय में करुणा
का रिसता द्रब्य है।
पर खून जम सा गया है।
न चाह है ना राह है।
बस एक पनाह है।
कोई किरण भी नजर
आती नहीं,
इस रात की भयानक दासता
जाती नहीं,
जीवन मे जीने का अभाव है
मृत्य ने सींच रखा है
धरती का हर कोना विष प्रभाव है।
व्यग्र है सब कब आएगा वो सुबह।
जब होंगी प्रातः बेला की मनभावन
हरने को आतुर दुख, न चाह है ना राह,
बस एक पनाह है।