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Zuhair abbas

Romance

3  

Zuhair abbas

Romance

अपनों से दगा ।

अपनों से दगा ।

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उसको अपना बनाया तो सही

मगर बड़ा तड़पाया मैंने।


उसके लबों की मुस्कान को ज़िन्दगी जीने का ज़रिया बनाया है

मगर ना चाहते हुए भी कई बार रूलाया मैंने।


हां उससे मोहब्बत तो बेइंतहा है

मगर कभी तफसील से बताया कहां मैंने।


मैंने खुद के वादों को तोड़ा है जबसे

उसको एहसासों को कितना रूलाया है मैंने।


मेरी वफ़ा मेरी मोहब्बत सब ख़ाक हो गई

जबसे उस नादान का दिल दुखाया मैंने।



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