अपनों का साथ
अपनों का साथ
ना रहे अब रिश्ते नाते
ना रहा अब वो प्यार
लोगो को नही भाता
अब अपनों का साथ ।
दूर गगन में सभी कोई
बने फिरे है सूरज जैसा
दे ना सकते छांव किसी को
चमकीला है पर सबसे अकेला ।
छोटी छोटी बातों से अब
होने लगी हैं अपनों में दरार
कहाँ गया वो बचपन का प्यार
जब खेलते थे सारे खेल एक साथ ।
हर एक मुश्किल को लेते थे
बड़े ही प्यार से संभाल
काश कोई लौटा दे सबको
वो अपनो का प्यार ।
फिर मिल जाते सारे रिश्ते नाते
सबको मिल जाता अपनो का साथ ।
