Chandramohan Kisku
Tragedy
एक शव
उस जवान का
जो तैनात था
देश की सीमा पर।
सब कोई देखा
उसके चरण में
आँसू बहाया
और बहुत ईज्जत के साथ
विदा किया।
पर उन्हें दिखाई नहीं दिया
देखकर भी मुँह फेर लिया
उस विधवा की ओर,
जो सफेद कपड़ा में थी
और उसकी आँखों में
आँसू थे।
समर्पण :कविता...
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लिखूंगी
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दरारों वाले दिल को और तोड़ दिया, मेरे जीवन की हर राह को कुछ ऐसे मोड़ दिया। दरारों वाले दिल को और तोड़ दिया, मेरे जीवन की हर राह को कुछ ऐसे मोड़ दिया।
कह लो बुरा भला, खुन्नशें मिटा लो, आंखें फेर लो, उपेक्षित कर मेरा मन दुखा लो! कह लो बुरा भला, खुन्नशें मिटा लो, आंखें फेर लो, उपेक्षित कर मेरा मन दुखा लो!
क्या अब भी तुम बेहतर ही बताना चाहोगे..? क्या अब भी तुम बेहतर ही बताना चाहोगे..?
रोज़ी रोटी की खातिर हम निकला था परदेस। रोज़ी रोटी की खातिर हम निकला था परदेस।
बह गया था कुछ ? या सब कुछ सैलाब ऐसा भी आया था , एक दिन ! बह गया था कुछ ? या सब कुछ सैलाब ऐसा भी आया था , एक दिन !
मंच पर बड़ी - बड़ी बातें बोलने से कभी कुछ नहीं होता मंच पर बड़ी - बड़ी बातें बोलने से कभी कुछ नहीं होता
बहुत कुछ एक सा था तुझ में मुझ में फिर भी तू मुझसे बहुत अलग सा ही रहा.. बहुत कुछ एक सा था तुझ में मुझ में फिर भी तू मुझसे बहुत अलग सा ही रहा..
औरत द्वारा ही सदियों से जलती आई है औरत। औरत द्वारा ही सदियों से जलती आई है औरत।
क्या इस समाज में ? बलात्कार के लिए ही सिर्फ अस्तित्व है मेरा ? क्या इस समाज में ? बलात्कार के लिए ही सिर्फ अस्तित्व है मेरा ?
कसर नहीं छोड़ी पत्थरों ने, राहों में मेरी अड़-अड़ कर कसर नहीं छोड़ी पत्थरों ने, राहों में मेरी अड़-अड़ कर
मैं लड़ रही देश की रक्षक बन, तो कहीं मेरे ही हिस्से में थप्पड़ और मार है। मैं लड़ रही देश की रक्षक बन, तो कहीं मेरे ही हिस्से में थप्पड़ और मार है।
कभी तो कोई आंधी ले आएगा, धरा पर वो ही इंसान जो बहुत डरता है, बहुत डरता है। कभी तो कोई आंधी ले आएगा, धरा पर वो ही इंसान जो बहुत डरता है, बहुत डरता है।
मुझको नहीं सारी दौलत चाहिए, बस थोड़ा सा मेरा अधिकार चाहिए। मुझको नहीं सारी दौलत चाहिए, बस थोड़ा सा मेरा अधिकार चाहिए।
दिल की टूटी फूटी ज़मीन तो इसे मिल ही चुकी है, दिल की टूटी फूटी ज़मीन तो इसे मिल ही चुकी है,
घर में चल रहा था बटवारा , मां चुप चाप देख रहीं थीं। घर में चल रहा था बटवारा , मां चुप चाप देख रहीं थीं।
सीधी सी दिखती थी राह जो मंज़िल की, कदम बढ़ाया, तो क्यों रास्ता धूमिल होने लगा है .... सीधी सी दिखती थी राह जो मंज़िल की, कदम बढ़ाया, तो क्यों रास्ता धूमिल होने लगा ह...
सब कुछ भूलकर बेशर्मी से अंध भक्ति में लीन होने सब कुछ भूलकर बेशर्मी से अंध भक्ति में लीन होने
मैं ग़ज़ल कहता हूँ सब मर्सिया-ख़्वाँ कहते हैं। मैं ग़ज़ल कहता हूँ सब मर्सिया-ख़्वाँ कहते हैं।
जिसे पाने की कभी ख्वाहिश थी आज उसे खो देने का डर नहीं! जिसे पाने की कभी ख्वाहिश थी आज उसे खो देने का डर नहीं!