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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Romance

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Romance

अंतिम पैगाम

अंतिम पैगाम

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प्रिय

क्या अब भी गिनती हो

हमारी दूरियों में कितने बसंत जुड़े

दरिया के किनारे कब मिले

एक बार जो बिछड़े

क्या अब भी सताती हैं

बनकर अनचाही यादें


तेरे सपने मेरे वादे

तुम भी नहीं भूली क्या

गलियों और बागों की बातें

अब भी सोचती हो क्या

बचपन के झरोखों से

ढूंढ निकलोगी मुझे

लुका - छिपी के ठिकानों से

व्यवहारिक नहीं सोच तेरा

असम्भव मिलन मेरा- तेरा

दोष किसे दें

इन ललित सुमनों, की मन भौंरे को

धंसता जा रहा दुनियादारी के दलदल में

रुन्धती जा रही आवाज पल - पल में

शायद है यह अंतिम पैगाम तेरे नाम

करूँगा याद तुझे हर सुबहो शाम



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