STORYMIRROR

Bhavna Thaker

Romance

3  

Bhavna Thaker

Romance

अनंत प्रेम

अनंत प्रेम

1 min
457

मोह की नगरी से उठी जो संवेदना 

तप्त मेरे उर में उठी एक चेतना 

हरसू हर नज़ारा जीवंत हो गया

आज मुझे प्रेम ही अनंत हो गया।


रोम-रोम आज मेरा संत हो गया 

बैराग छंट गया न द्वेष है न कोई राग 

खाली दिल उजियारा ज्वलंत हो गया 

शेष ना बचा है कुछ कर दिया समर्पित।


दिव्य तेरी रूह से शाश्वत हो गया 

(जोगी तेरे जोग से गिरह जो बँध गई 

और सारी सुर्खियाँ बेमन सी हो गई)

काल चाहे बीते युग नाद एक बस गया 

शब्द तेरे लब पे टिके मंत्र हो गया।


आराधना है गुप्त मन ही मन रटे है मन

देवता की वंदना में बीते मेरे सारे पल

सकल विश्व जाने एक जाँ है दो बदन

ढोंग ना करें कभी मैं प्रिया है तू प्रियतम

दो दिलों को प्रेम ही अनंत हो गया।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance