अंखियों की सरहदों से दूर,
अंखियों की सरहदों से दूर,
अंखियों की सरहदों से दूर, बहुत दूर,
जब ख़ास कोई अपना चला जाता है।
कितनी खुशनुमा थी ज़िन्दगी संग उसके,
वो मंज़र आज भी बार-बार याद आता है।।
काश! कोई लौटा दे वही गुजरा ज़माना,
नम आंखों से आज भी उसे तलाशता हूँ।
हर तरफ़ उसकी ही तस्वीर नज़र आती है,
राह के हर पत्थर को उठाकर तराशता हूँ।।
जब जब वह मासूम चेहरा याद आता है,
दिल की धड़कन बन हर पल धड़कती है।
कभी आषाढ़ में मोती बन कर बरसती है,
कभी आकाश में बिजली बन कर कड़कती है।।
सूनी सूनी-सी रातों में तनहाई अकेली है,
सन्नाटा भी अक्सर खोया-खोया रहता है।
हवाओं ने भी रुख अपना बदल लिया है,
चौदहवीं का चांद भी सोया-सोया रहता है।।
मरू की तपती छाती में ख्वाहिशें प्यासी हैं,
कांटों की माला पहने कैक्टस मुरझाने लगा है।
सुनहरे रेत के कणों से किसकी प्यास बुझी है,
नादान दिल आज मुझको ही समझाने लगा है।।
तुमसे जुदा होने के बाद आज मैंने है जाना,
विरह की अग्नि में जलकर प्रेम कुंदन बन जाता है।
अंधेरे भी कतराते थे जिन गलियों में जाने से,
दिल का को उजाड़ कोना भी रोशन बन जाता है।।